क्यों लगता है कुंभ मेला और 3 साल से लेकर 12 साल तक के कुंभ मेले का क्या है राज?
कुंभ मेला एक बहुत ही ऐतिहासिक और धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 साल में चार प्रमुख स्थानों- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक- पर आयोजित होता है। इस मेले का आयोजन एक निश्चित चक्र के तहत होता है, जिसे भारतीय पौराणिक कथाओं और ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर तय किया जाता है। इन स्थानों पर कुंभ मेला कब लगेगा, इसका निर्धारण खास ज्योतिषीय आंकड़ों और ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है। इस प्रक्रिया को समझने के लिए हम पहले कुंभ मेला के इतिहास और उसके आयोजनों के बारे में थोड़ा विस्तार से जानें, फिर जानें कि इन स्थानों पर मेला कैसे तय होता है।
कुंभ मेला का ऐतिहासिक महत्व
कुंभ मेला का संबंध समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से है, जैसा कि पहले बताया गया था। जब देवताओं और असुरों के बीच अमृत कलश के लिए युद्ध हुआ, तब वह अमृत कलश चार स्थानों पर गिरा – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। यह स्थान अब कुंभ मेले के आयोजन स्थल के रूप में प्रसिद्ध हैं। कुंभ मेला एक अद्वितीय धार्मिक घटना है, जिसमें लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए इकट्ठा होते हैं, ताकि वे पापों से मुक्त हो सकें और मोक्ष की प्राप्ति कर सकें।
कुंभ मेला के आयोजन का ज्योतिषीय आधार
कुंभ मेला के आयोजन के लिए निश्चित स्थान और समय का निर्धारण ज्योतिषीय गणनाओं और ग्रहों की स्थिति पर आधारित होता है। हिंदू धर्म में एक विशेष पंचांग (हिंदू कैलेंडर) होता है, जिसे साल भर की तिथियों, नक्षत्रों, और ग्रहों की स्थिति के अनुसार तैयार किया जाता है। कुंभ मेला के आयोजन के लिए इस पंचांग में कुछ विशेष समयों का चुनाव किया जाता है, जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का एक विशिष्ट संयोग बनता है। इसे महाकुंभ योग कहा जाता है।
कुंभ मेला चार प्रमुख स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन
और नासिक में लगता है। जिसके बारे में हमने काफी विस्तार से पहले भी स्टोरी किया है। अब चलिए जानते हैं कि कुंभ मेला का समय और स्थान कैसे तय होता है?
कुंभ मेला का आयोजन हर 12 वर्षों में एक बार होता है, लेकिन इसके स्थानों का चयन हर बार बदलता है। इसका कारण है कि कुंभ मेला का आयोजन ग्रहों की विशेष स्थिति पर आधारित है। यह समय तब तय होता है जब सूर्य और बृहस्पति ग्रहों का विशिष्ट संयोग बनता है, जिसे “महाकुंभ योग” कहा जाता है। यह संयोग पूरे 12 वर्षों के चक्र में आता है। इसलिए, कुंभ मेला का आयोजन हर 12 साल में एक बार उस स्थान पर होता है, जहां ग्रहों का संयोग होता है।
अर्धकुंभ और महाकुंभ
हर 12 वर्षों में आयोजित होने वाले कुंभ मेले के अलावा, हर 6 साल में अर्धकुंभ का आयोजन भी होता है, जिसमें आधे समय के लिए ही श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं। अर्धकुंभ केवल प्रयागराज में आयोजित होता है। महाकुंभ, जो सबसे बड़ा कुंभ मेला होता है, हर 144 वर्षों में एक बार आयोजित होता है। इसे विशेष रूप से ध्यान से और अत्यधिक श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
तो इस तरह से देखा जाए तो कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और आस्था का एक प्रमुख हिस्सा रहा है और यही कारण है कि इस बार 13 जनवरी 2025 से प्रयागराज में शुरू हो रहे कुंभ मेले का देश-दुनिया में बेसब्री से इंतजार है। कुंभ मेले का आयोजन हर 12 साल में चार प्रमुख स्थानों पर होता है, और जैसा कि हमने पहले भी बताया कि यह आयोजन पूरी तरह से ज्योतिषीय गणनाओं पर निर्भर करता है। इन स्थानों पर श्रद्धालु अपनी आस्था और विश्वास के साथ पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए आते हैं, ताकि वे अपने पापों से मुक्ति पा सकें और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त कर सकें। कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा है, जो हर बार श्रद्धा, भक्ति और एकता का प्रतीक बनकर उभरता है।