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महाकुंभ 2025: कैसे तय होता है कुंभ मेला?

महाकुंभ मेला हर 12 साल बाद प्रयागराज के संगम तट पर लगता है। यह एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन है। यह मेला 13 जनवरी 2025 से शुरू होकर 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि कुंभ मेला कैसे और क्यों आयोजित होता है? इसके आयोजन के पीछे खास ज्योतिषीय गणना है, जिसे समझना बेहद दिलचस्प है।

कुंभ मेला का निर्धारण ज्योतिष के हिसाब से होता है। यह सिर्फ हिंदी या अंग्रेजी कैलेंडर पर निर्भर नहीं होता, बल्कि ग्रहों की चाल पर आधारित होता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार, ग्रहों की स्थिति और उनकी गति के आधार पर विभिन्न धार्मिक आयोजनों का समय तय होता है, और कुंभ मेला इन घटनाओं में एक प्रमुख है।

प्राचीन काल से भारतीय ज्योतिष में ग्रहों को समय निर्धारण के लिए घड़ी के रूप में देखा गया है। उदाहरण के लिए, एक साल की गणना बृहस्पति के भ्रमण से, एक महीने की गणना सूर्य की गति से और ढाई साल की गणना शनि की चाल से की जाती है। कुंभ मेला, खासतौर पर, बृहस्पति ग्रह की गति पर निर्भर करता है। जब बृहस्पति वृषभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं, तभी प्रयागराज में कुंभ मेला लगता है।

कुंभ मेला का नाम कुंभ का अर्थ है घड़ा या सुराही, और मेला का मतलब है सभा या मिलन। इसका उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति, शुद्धि, और ध्यान की प्रक्रिया को बढ़ावा देना है। इस समय ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है कि श्रद्धालु गंगा स्नान और ध्यान में मन की शांति प्राप्त कर सकते हैं।

कुंभ मेला के आयोजन का तरीका बृहस्पति ग्रह की स्थिति के आधार पर तय होता है। यह एक दुर्लभ घटना होती है, जो हर 12 साल बाद घटित होती है। इस समय की विशेषता यह है कि ग्रहों की स्थिति इस प्रकार होती है कि यह दिन और समय आध्यात्मिक उन्नति और साधना के लिए सबसे उपयुक्त होते हैं।

प्रयागराज के अलावा, कुंभ मेला हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में भी आयोजित होता है, लेकिन हर स्थान पर इसके आयोजन का समय अलग-अलग होता है। हरिद्वार में बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश पर कुंभ मेला आयोजित होता है, जबकि उज्जैन में बृहस्पति के सिंह राशि में और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश पर यह मेला लगता है। नासिक में भी इसी तरह की विशेष ग्रह स्थिति पर कुंभ मेला आयोजित होता है।

आधिकारिक रूप से प्रयागराज में कुंभ मेला की शुरुआत मकर संक्रांति से होती है, लेकिन पूजा अर्चना और स्नान का सिलसिला इससे पहले ही शुरू हो जाता है। इस समय यहां लाखों लोग जुटते हैं, जो गंगा में स्नान करने के बाद आध्यात्मिक उन्नति के लिए ध्यान और साधना करते हैं।

यह समय शरीर और आत्मा के लिए विशेष लाभकारी होता है, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह समय महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्योतिषाचार्य और शोधकर्ता इस बात पर काम कर रहे हैं कि कुंभ के दौरान स्नान से शरीर को कैसे लाभ होता है।

महाकुंभ 2025 का आयोजन 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलेगा। इस दौरान मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी जैसे महत्वपूर्ण दिन होंगे, जब विशेष स्नान योग बनेंगे।

कुंभ मेला एक अद्भुत धार्मिक अनुभव है, जो न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग खोलता है, बल्कि ग्रहों की गति और उनकी प्रभावशाली स्थिति को समझने का भी अवसर प्रदान करता है।

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Author: Panditjee

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