महाकुंभ 2025 : अमृत कलश को लेकर देवताओं और दानवों के बीच युद्ध के बाद इन स्थानों पर गिरी थी अमृत कलश की कुछ बूंदें, जानें क्या है पौराणिक महत्व
समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और दानवों ने अमृत कलश की प्राप्ति के लिए कठिन परिश्रम किया। जब अमृत कलश प्रकट हुआ, तो इसे लेकर देवताओं और दानवों के बीच संघर्ष छिड़ गया। इस युद्ध के दौरान, अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरीं: प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। इन स्थानों को पवित्र माना गया और यहीं से कुंभ पर्व की परंपरा शुरू हुई। इन स्थलों का पौराणिक महत्व विस्तार से जानना अत्यंत रोचक है।
प्रयागराज: त्रिवेणी संगम का दिव्य स्थान
प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, पवित्र नदियों गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम के लिए प्रसिद्ध है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब अमृत की बूंदें यहां गिरीं, तो यह स्थान अत्यंत पवित्र हो गया। यह कहा जाता है कि यहां स्नान करने से आत्मा को शुद्धि मिलती है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त होती है।
त्रिवेणी संगम पर स्नान को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना जाता है। प्रयागराज को तीर्थराज भी कहा गया है, क्योंकि यहां पर हर 12 वर्षों में कुंभ और 6 वर्षों में अर्धकुंभ मेले का आयोजन होता है। यह स्थान ऋषियों और मुनियों की तपोभूमि भी रहा है।
हरिद्वार: गंगा का दिव्य अवतरण
हरिद्वार को गंगा का प्रवेश द्वार माना जाता है। यह स्थान हिमालय से निकलने के बाद गंगा के मैदानी क्षेत्र में प्रवेश का पहला पड़ाव है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां अमृत की बूंदें गिरने से यह स्थान पवित्र हो गया।
हर की पौड़ी, हरिद्वार का सबसे पवित्र स्थल, वह स्थान है जहां गंगा की धारा का स्नान जीवन के सारे पापों को धो देता है। ऐसा कहा जाता है कि अमृत की ऊर्जा यहां की हर बूंद में समाहित है। हरिद्वार को धर्म, संस्कृति और आध्यात्म का संगम स्थल माना जाता है।
उज्जैन: महाकाल की नगरी
उज्जैन, मध्य प्रदेश में स्थित, भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर के लिए प्रसिद्ध है। यहां अमृत की बूंदें गिरने से यह स्थान कुंभ पर्व के आयोजन का पवित्र स्थल बना। उज्जैन क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है, जिसे पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक माना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, उज्जैन वह स्थान है जहां भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था। यह स्थान ज्योतिष शास्त्र और खगोल विज्ञान के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां कुंभ के दौरान स्नान करने से व्यक्ति को शिव की कृपा और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
नासिक: तपस्या और गोदावरी का संगम
नासिक, महाराष्ट्र में स्थित, गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। इसे दक्षिण भारत का गंगा भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां भी अमृत की बूंदें गिरीं, जिससे यह स्थान पवित्र बन गया।
रामायण की कथाओं में नासिक का उल्लेख भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के वनवास के समय से जुड़ा है। पंचवटी, जो नासिक का एक हिस्सा है, वह स्थान है जहां भगवान राम ने अपना वनवास का समय बिताया था। यहां कुंभ पर्व के दौरान स्नान करने से सभी प्रकार के दुख और पाप समाप्त हो जाते हैं।
इन स्थानों का आध्यात्मिक महत्व
प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक न केवल पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और आध्यात्म का केंद्र भी हैं। इन स्थलों पर कुंभ मेले का आयोजन आध्यात्मिक शक्ति और धार्मिक आस्था का प्रतीक है।
यह माना जाता है कि इन स्थानों पर स्नान करने से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि आत्मा को दिव्यता और शांति की प्राप्ति होती है। यह पवित्र स्थलों की यात्रा व्यक्ति को धर्म, कर्म और आत्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करती है।