करवा चौथ व्रत | नियम, पूजा विधि और महिमा
करवा चौथ व्रत को समझना बहुत आसान है। यह खासतौर पर विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, सुख, और समृद्धि के लिए रखा जाता है। यह व्रत कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, जब महिलाएँ पूरे दिन बिना कुछ खाए और पिए उपवास करती हैं और रात में चंद्र दर्शन के बाद व्रत तोड़ती हैं। आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं:
व्रत के नियम:
व्रत की शुरुआत (सरगी) करवा चौथ के दिन महिलाएँ सुबह जल्दी उठती हैं, सूर्योदय से पहले।
वे सरगी खाती हैं, जो उनकी सास उन्हें देती हैं। सरगी में हल्का और सेहतमंद खाना होता है, ताकि वे दिनभर बिना भोजन और पानी के रह सकें।
निर्जला उपवास:
महिलाएँ दिनभर बिना पानी और खाना खाए रहती हैं। यह उपवास सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक चलता है।
सोलह श्रृंगार:
करवा चौथ के दिन महिलाएँ लाल या चमकीले रंग के कपड़े पहनती हैं और पूरी तरह सोलह श्रृंगार करती हैं। इसमें सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां, और मेहंदी शामिल होती हैं।
पूजा की विधि:
शाम को महिलाएँ करवा चौथ की पूजा करती हैं। पूजा के लिए एक मिट्टी का करवा (कलश) लिया जाता है, जिसमें पानी भरा होता है।
भगवान गणेश और करवा माता की पूजा की जाती है। इस दौरान एक कथा सुनी जाती है, जिसमें इस व्रत की महिमा बताई जाती है।
चंद्र दर्शन:
रात को जब चाँद निकलता है, महिलाएँ उसे छलनी से देखती हैं। इसके बाद वे चंद्रमा को जल अर्पण करती हैं और फिर अपने पति के हाथ से पानी पीकर और कुछ खाना खाकर व्रत तोड़ती हैं।
व्रत खोलने की प्रक्रिया:
चाँद देखने के बाद महिलाएँ सबसे पहले चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं, यानी उसे जल अर्पण करती हैं।
फिर, अपने पति के हाथ से पहला पानी पीकर और थोड़ा खाना खाकर उपवास तोड़ती हैं।
करवा चौथ की महिमा:
करवा चौथ का व्रत पति की लंबी उम्र और घर में सुख-समृद्धि लाने के लिए बहुत खास माना जाता है।
यह व्रत नारी शक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। यह विवाहित जीवन में पति-पत्नी के बीच प्रेम और आस्था को मजबूत बनाता है।