सरस्वती नहीं, फिर भी त्रिवेणी को संगम क्यों कहते हैं?
प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) में स्थित त्रिवेणी संगम का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है। इसे गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम कहा जाता है। लेकिन सरस्वती नदी आज दिखाई नहीं देती है, जिससे सवाल उठता है कि इसे त्रिवेणी संगम क्यों कहते हैं?
पौराणिक कथा और विश्वास की मानें तो सरस्वती नदी का उल्लेख वेदों और महाभारत में मिलता है। इसे ज्ञान, विद्या और पवित्रता की देवी सरस्वती से जोड़ा गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सरस्वती अदृश्य रूप में संगम तक पहुंचती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह नदी भूमिगत होकर यमुना और गंगा में विलीन हो जाती है। इस वजह से प्रयागराज का संगम त्रिवेणी कहलाता है।
भौगोलिक और वैज्ञानिक तथ्यों पर एक नजर डालें तो वैज्ञानिक और भूगर्भीय अनुसंधानों ने सरस्वती नदी के अस्तित्व को खोजना शुरू किया। विभिन्न अनुसंधानों ने यह सिद्ध किया कि प्राचीनकाल में सरस्वती एक विशाल नदी थी, जिसे आज की घग्घर-हकरा नदी से जोड़ा जाता है। यह नदी समय के साथ सूख गई, लेकिन इसके निशान हरियाणा, राजस्थान और पंजाब के रेगिस्तानी इलाकों में मिले हैं।
त्रिवेणी संगम का प्रतीकात्मक महत्व को ध्यान में रखते हुए अगर हम विश्लेषण करें तो गंगा और यमुना का संगम स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। गंगा का पानी दूधिया सफेद होता है, जबकि यमुना का पानी हरा-नीला। सरस्वती को अदृश्य लेकिन आत्मा और शुद्धता का प्रतीक माना गया है। धार्मिक दृष्टिकोण से, त्रिवेणी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी पापों का क्षय हो जाता है।
इस प्रकार, सरस्वती भले ही भौतिक रूप से दिखाई न देती हों, लेकिन उसकी आध्यात्मिक उपस्थिति और धार्मिक विश्वास त्रिवेणी संगम को विशेष बनाते हैं।