गोवर्धन पूजा: परंपरा, विधि और धार्मिक महत्व
गोवर्धन पूजा को खासकर उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पूजा दीवाली के अगले दिन आती है और इसे अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। आइए विस्तार से जानते हैं कि गोवर्धन पूजा कैसे मनाई जाती है:
1. गोवर्धन पर्वत का प्रतीकात्मक निर्माण:
पूजा के दिन मिट्टी, गोबर या गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाया जाता है। इसे गांव या घर के आंगन में सजाया जाता है, और इसमें पहाड़ के रूप में एक छोटा सा टीला बनाया जाता है, जिसे फूलों, पत्तियों और दीयों से सजाया जाता है।
2. भगवान कृष्ण की पूजा:
गोवर्धन पूजा में भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा होती है, क्योंकि यह दिन उनके द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने और गोकुलवासियों को इंद्रदेव के प्रकोप से बचाने की घटना से जुड़ा है। लोग भगवान कृष्ण के सामने दीप जलाते हैं और भोग अर्पित करते हैं।
3. अन्नकूट का आयोजन:
इस दिन अन्नकूट का आयोजन होता है, जिसमें 56 प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं, जिसे “56 भोग” कहा जाता है। यह भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है और फिर इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। यह आयोजन कृष्ण जी की भक्ति और भगवान के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है।
4. पशुधन की पूजा:
इस दिन विशेष रूप से गायों और बैलों की पूजा की जाती है। उन्हें अच्छे से स्नान कराया जाता है, उनके सींगों को सजाया जाता है, और उनके माथे पर तिलक लगाया जाता है। गायों को भोजन और मिठाई खिलाई जाती है और उनके चारों ओर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की जाती है। पशुधन की पूजा का महत्व कृषि जीवन में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
5. परिक्रमा और आरती:
गोवर्धन पर्वत के प्रतीक की परिक्रमा की जाती है। इस दौरान भजन और कीर्तन गाए जाते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की आरती की जाती है। परिक्रमा के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है।
6. धार्मिक कथा का श्रवण:
पूजा के दौरान, गोवर्धन पर्वत की कथा का वाचन भी होता है, जिसमें भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने और इंद्रदेव को पराजित करने की कथा सुनाई जाती है। इससे भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति का भाव उत्पन्न होता है।
गोवर्धन पूजा का उद्देश्य प्रकृति, कृषि, और पशुधन के प्रति आभार प्रकट करना और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना है।