महाभारत का वह प्रसंग जो बताता है कि कोई आपका भी कर दे तो हमें धैर्य से काम लेना चाहिए
आज हम महाभारत के उस प्रसंग का जिक्र करेंगे जिससे हमें यह सीख मिलती है कि प्रतिशोध और अपमान के बावजूद, हमें धैर्य और समझदारी से काम लेना चाहिए, क्योंकि गलत रास्ता केवल आत्मविनाश की ओर ले जाता है। साथ ही, सच्चे इरादों और संघर्ष से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है।
महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह शूरवीर की तरह लड़े लेकिन उनका अंत कुछ अलग तरीके से हुआ और उनकी मृत्यु का कारण बना एक शख्स, शिखंडी, जो पहले जन्म में एक महिला थी। चलिए पूरे प्रसंग को समझते हैं ताकि इस प्रसंग से मिलनेवाली सीख को हम आत्मसात कर सकें…
भीष्म ने एक बार अपने सौतेले भाई, विचित्रवीर्य, के लिए तीन राजकुमारियों अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का अपहरण किया। ये तीनों बहनें थीं। इनमें से अम्बिका और अम्बालिका तो विवाह के लिए तैयार हो गईं, लेकिन अम्बा का दिल राजा शाल्व पर था। जब भीष्म ने अम्बा को राजा शाल्व के पास भेजा, तो शाल्व ने उसे स्वीकार करने से मना कर दिया।
अम्बा निराश होकर वापस भीष्म के पास आई और उनसे विवाह करने का निवेदन किया, लेकिन भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा के कारण उसे ठुकरा दिया। यह अपमान अम्बा से सहन नहीं हुआ, और उसने प्रतिज्ञा की कि वह भीष्म से बदला लेगी। इस प्रतिज्ञा के बाद अम्बा ने परशुराम जी के पास जाकर अपनी पूरी कथा सुनाई।
परशुराम ने भीष्म से बदला लेने के लिए युद्ध करने का निर्णय लिया, लेकिन भीष्म ने उन्हें युद्ध में हरा दिया। हारकर परशुराम ने भगवान शिव से एक वरदान प्राप्त किया, जिसके बाद उन्होंने यह वरदान लिया कि वह भीष्म की मृत्यु का कारण बनेंगे।
अम्बा की यह प्रतिज्ञा और परशुराम का वरदान भीष्म की मृत्यु की कहानी से जुड़ी है। बाद में, जब शिखंडी ने जन्म लिया, तो वह पहले जन्म में अम्बा ही थी। शिखंडी के रूप में अम्बा ने अपना बदला लिया और महाभारत के युद्ध में भीष्म को युद्धभूमि पर पराजित कर दिया।
यह कथा महाभारत के युद्ध के एक गहरे और रहस्यमय पहलू को उजागर करती है, जहां शिखंडी ने अपने पूर्व जन्म की भावना को पूरा किया और भीष्म की मृत्यु का कारण बना।