जानते हैं महाकुंभ, अर्धकुंभ और पूर्णकुंभ में क्या है अंतर?
कुंभ मेला हिंदू धर्म का एक पवित्र आयोजन है, जो लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। इस मेले की शुरुआत मकर संक्रांति के दिन होती है और इसका समापन महाशिवरात्रि के दिन होता है। वर्ष 2025 में महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में हो रहा है, जो 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलेगा। कुंभ को तीन प्रमुख श्रेणियों में बांटा गया है – महाकुंभ, अर्धकुंभ और पूर्णकुंभ। आइए जानते हैं इन तीनों में क्या अंतर है।
क्यों होता है कुंभ का आयोजन?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत पाने के लिए संघर्ष हुआ, तो अमृत की कुछ बूंदें धरती पर चार स्थानों पर गिरीं – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। इन चार स्थानों को पवित्र माना जाता है और इन्हीं जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
पूर्णकुंभ क्या है?
हर 12 साल में लगने वाले कुंभ मेले को पूर्णकुंभ कहा जाता है। इसका आयोजन चार स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में किया जाता है। पूर्णकुंभ का स्थान ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर तय किया जाता है। यह मेले का सबसे सामान्य स्वरूप है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
अर्धकुंभ क्या है?
अर्धकुंभ का अर्थ है “आधा कुंभ”। इसका आयोजन हर 6 साल में किया जाता है। यह केवल दो स्थानों – प्रयागराज और हरिद्वार में आयोजित होता है। अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ के बीच आने वाला आयोजन है और इसमें भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।
महाकुंभ क्या है?
महाकुंभ सबसे महत्वपूर्ण और विशाल धार्मिक आयोजन है, जो हर 144 साल में केवल प्रयागराज में होता है। इसे 12 पूर्णकुंभों के बाद आयोजित किया जाता है। इस मेले को सबसे पवित्र माना जाता है और इसमें दुनिया भर से करोड़ों श्रद्धालु शामिल होते हैं।
महाकुंभ 2025 में प्रमुख स्नान तिथियां
13 जनवरी – लोहड़ी
14 जनवरी – मकर संक्रांति
29 जनवरी – मौनी अमावस्या
3 फरवरी – बसंत पंचमी
12 फरवरी – माघी पूर्णिमा
26 फरवरी – महाशिवरात्रि
महाकुंभ के महत्व और नियम
महाकुंभ में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है। कुंभ में स्नान के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन करना जरूरी होता है। स्नान करते समय साबुन या शैंपू का उपयोग नहीं करना चाहिए। स्नान के बाद जरूरतमंदों को दान देना शुभ माना जाता है। दीपदान करना भी अधिक फलदायी होता है।
महाकुंभ, अर्धकुंभ और पूर्णकुंभ, तीनों ही कुंभ मेले हिंदू धर्म में अलग-अलग महत्व रखते हैं और हर आयोजन श्रद्धालुओं को अध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।