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मकर संक्रांति, क्या है इस पर्व का धार्मिक महत्व

मकर संक्रांति का त्योहार भारत के कई राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही दिनों की अवधि बढ़ने लगती है और ठंड का असर धीरे-धीरे कम होने लगता है। इसे फसल कटाई के मौसम की शुरुआत और प्रकृति के संतुलन का प्रतीक माना जाता है। इस त्योहार से जुड़ी कई परंपराएं और रीति-रिवाज हैं, जिनमें दही-चूड़ा का विशेष महत्व है।

दही-चूड़ा मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति के दिन खाया जाता है। इसके पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक और स्वास्थ्य से जुड़े कई कारण हैं। मान्यता है कि दही-चूड़ा खाने से घर में सुख-समृद्धि आती है और यह जीवन में सौभाग्य का प्रतीक है। इसे सात्विक और पवित्र भोजन के रूप में भी देखा जाता है।

दही, जो ठंडे प्रभाव वाला होता है, और चूड़ा (पोहा), जो नए धान से तैयार होता है, मिलकर शरीर को आवश्यक ऊर्जा और पोषण प्रदान करते हैं। सर्दियों में दही के साथ गुड़ और तिल का सेवन शरीर को गर्मी देता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। चूड़ा आसानी से पचने वाला होता है, जो पेट के लिए हल्का और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है। तिल-गुड़ के साथ इसे खाने की परंपरा आयुर्वेदिक दृष्टि से भी बेहद फायदेमंद मानी गई है।

धार्मिक दृष्टिकोण से मकर संक्रांति का दिन दान और पुण्य का पर्व है। इस दिन स्नान-दान का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन गंगा, यमुना या किसी पवित्र नदी में स्नान करके सूर्य देव को अर्घ्य देने और दान करने से कई गुना पुण्य प्राप्त होता है। दान में तिल, गुड़, अन्न, कंबल और धन देने की परंपरा है। इसका उद्देश्य जरूरतमंदों की मदद करना और समाज में सामंजस्य बनाए रखना है।

मकर संक्रांति 2025 में यह पर्व 14 जनवरी को मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस दिन सूर्य सुबह 8 बजकर 44 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। शुभ कार्यों के लिए यह समय अत्यंत लाभकारी माना गया है। महा पुण्य काल सुबह 9 बजकर 3 मिनट से 10 बजकर 48 मिनट तक रहेगा। इस अवधि में स्नान और दान करना शास्त्रों में अत्यधिक पुण्यदायी बताया गया है।

मकर संक्रांति का त्योहार केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि हमारे स्वास्थ्य और सामाजिक जीवन को भी समृद्ध करने वाला है। यह पर्व सिखाता है कि हम अपने जीवन में संतुलन बनाए रखें और दूसरों की भलाई के लिए काम करें। दही-चूड़ा, तिल-गुड़ और खिचड़ी जैसी परंपराओं के माध्यम से यह त्योहार हमें अपने भोजन और जीवन शैली में सादगी और सामंजस्य बनाए रखने की प्रेरणा देता है।

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। पंडितजी डॉट कॉम यहां लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में जो जानकारी दी गई है, वो विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से ली गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। पंडितजी डॉट कॉम अंधविश्वास के खिलाफ है।

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