संकष्टी चतुर्थी: पूजा, व्रत और चंद्र दर्शन का महत्त्व
संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश की पूजा का विशेष दिन है, जिसे हर महीने चतुर्थी तिथि (कृष्ण पक्ष) को मनाया जाता है। इस व्रत का प्रमुख उद्देश्य भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करना और सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति पाना है। इसे खासतौर से कठिनाइयों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।
संकष्टी चतुर्थी मनाने की विधि:
स्नान और शुद्धिकरण:
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें। पूजा के लिए मन और शरीर को शुद्ध करें।
गणेश पूजा:
घर के मंदिर में भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें। उन्हें धूप, दीप, फल, और प्रसाद अर्पित करें।
भगवान गणेश को दुर्वा, सिंदूर, चावल, और मोदक (या कोई मिठाई) चढ़ाएं।
“ॐ गण गणपतये नमः” या “वक्रतुंड महाकाय” मंत्र का जाप करें।
व्रत:
इस दिन व्रत रखने का महत्व है। संकष्टी चतुर्थी के दिन निर्जल या फलाहार व्रत रखा जाता है, जो चंद्र दर्शन के बाद खोलते हैं। कुछ लोग केवल पानी और फल लेते हैं जबकि कुछ लोग एक समय भोजन करते हैं।
चंद्र दर्शन और व्रत का समापन:
शाम को चंद्रमा के दर्शन करके व्रत का समापन किया जाता है। व्रत खोलने से पहले चंद्रमा को अर्घ्य दें और भगवान गणेश की आरती करें।
गणेश कथा का श्रवण:
व्रत के दौरान संकष्टी चतुर्थी की कथा का पाठ करना या सुनना शुभ माना जाता है। यह कथा भगवान गणेश के महात्म्य और उनकी कृपा का वर्णन करती है।
आरती:
पूजा के अंत में भगवान गणेश की आरती करें और सभी परिवार के सदस्यों के साथ प्रसाद ग्रहण करें।
इस व्रत का महत्व:
संकष्टी चतुर्थी को भगवान गणेश की कृपा से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस व्रत से बाधाएं दूर होती हैं और व्यक्ति को शांति मिलती है।
पूजन के समय ध्यान रखने योग्य बातें:
पूजा के दौरान भगवान गणेश को मोदक या कोई मीठा प्रसाद चढ़ाना शुभ होता है।
चंद्र दर्शन के बिना व्रत को पूरा नहीं माना जाता, इसलिए चंद्रमा के दर्शन जरूर करें।
संकष्टी चतुर्थी व्रत को पूरी श्रद्धा और नियम के साथ करने से भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है।