23 मई को मनाएं बुद्ध पूर्णिमा, जानें पूजा विधि और उसका महत्व
हिंदू पंचांग की मानें तो हर साल वैशाख महीने की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाता है। इसे पीपल पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस बारे में आपको एक जरूरी जानकारी यह है कि इस यह त्यौहार पूर्णिमा 23 मई को मनाया जाएगा। आज ही के दिन भगवान गौतम बुद्ध का जन्म भी हुआ था और संयोग से इसी दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान की भी प्राप्ति हुई थी। इसलिए बुद्ध के जीवन की तीन अहम बातें यानि बुद्ध का जन्म, भगवान् बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति और उनके निर्वाण की वजह से भी यह दिन बहुत ही ख़ास माना जाता हैI
बुध पूर्णिमा तिथि का आरंभ पंचांग दिवाकर के अनुसार 22 मई को बुधवार शाम के समय 6 बजकर 48 मिनट पर होगा और 23 मई गुरुवार को रात में 7 बजकर 23 मिनट तक रहेगी। ऐसे में वैशाख पूर्णिमा का व्रत 23 मइको किया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार, पूर्णिमा का व्रत प्रदोषकाल में रखने का महत्व है।
पुराणों में महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना गया है। इस दिन बौद्ध मतावलंबी बौद्ध विहारों और मठों में इकट्ठा होकर एक साथ उपासना करते हैं। दीप जला कर बुद्ध की शिक्षाओं का अनुसरण करने का संकल्प लेते हैं। कुछ बातें जो आपको भी भगवान् बुद्ध से सीखनी चाहिए उसके बारे में भी हम आपको बता देते हैंI
अष्टांगिक मार्ग
महात्मा बुद्ध ने बताया कि तृष्णा ही सभी दुखों का मूल कारण है। तृष्णा के कारण संसार की विभिन्न वस्तुओं की ओर मनुष्य आकर्षित होता है और जब वह उन्हें पा नहीं सकता तब उसे दुख होता है। तृष्णा यानी किसी चीज़ को पाने की लालसा के साथ मरने वाला इंसान ही अगला जन्म लेता हैI इस तरह अक्सर संसार के दुख चक्र में पिसता रहता है। इसलिए हम सभी को सांसारिक लालसा को त्याग देना चाहिए और मुक्ति के रस्ते पर आगे बढ़ना चाहिए।
महात्मा बुद्ध ने पहली बार सारनाथ में प्रवचन दिया था उनका यह उपदेश ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ के नाम से जाना जाता है| भेदभाव रहित होकर हर वर्ग के लोगों ने महात्मा बुद्ध की शरण ली व उनके उपदेशों का अनुसरण किया। कुछ ही दिनों में पूरे भारत में ‘बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघ शरणम् गच्छामि’का जयघोष गूंजने लगा।उन्होंने कहा कि केवल मांस खाने वाला ही अपवित्र नहीं होता बल्कि क्रोध, व्यभिचार, छल, कपट, ईर्ष्या और दूसरों की निंदा भी इंसान को अपवित्र बनाती है। मन की शुद्धता के लिए पवित्र जीवन बिताना जरूरी है।
भगवान बुद्ध का महानिर्वाण
भगवान बुद्ध का धर्म प्रचार 40 वर्षों तक चलता रहा। अंत में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में पावापुरी नामक स्थान पर 80 वर्ष की अवस्था में ई.पू. 483 में वैशाख की पूर्णिमा के दिन ही महानिर्वाण प्राप्त हुआ। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर कुशीनगर के महापरिनिर्वाण मंदिर में एक महीने तक चलने वाले विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश विदेश के लाखों बौद्ध अनुयायी यहां पहुंचते हैं।
इसलिए इस बुद्ध पूर्णिमा को अपने लिए बनाइये और भी खास, गौतम बुद्ध के जीवन से प्रेरणा लेकरI